– वैकल्पिक ईंधन मिलेगा, तो जल शोधन भी होगा
– बीयू के पर्यावरण विभाग का शोध अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर स्वीकारा गया
झांसी : क्या आप उम्मीद कर सकते हैं कि महानगर में बने लक्ष्मी ताल में लगे पौधे दवाएं बनाने के साथ ही बहुत काम आ सकते हैं। जी हां, ऐसा है। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग द्वारा इस संदर्भ में किया गया शोध अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर स्वीकार कर लिया गया है। यह शोध पिछले पांच सालों से चल रहा है।
स्पेन के बार्सेलोना में तेल, गैस, पेट्रोलियम विज्ञान व इंजीनियरिंग आधारित वैश्विक शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ। इसमें भारत से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया विश्वविद्यालय व बुंदेलखंड विश्वविद्यालय से शोध आमंत्रित किए गए थे। इसमें बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के असोसिएट प्रोफेसर डॉ. एके गिरि के निर्देशन में किए गए शोध को स्वीकार किया गया है। इस शोध में झांसी के लक्ष्मी ताल, धोबीघाट में उगे पौधों को शामिल किया गया है। इन पौधों में सूक्ष्म शैवाल उपस्थित होते हैं, जो सीवेज के पानी को शोधित करने में कारगर साबित हो सकते हैं। यानि कि पानी की गुणवत्ता में सुधार करते हैं। इसके अलावा इनसे एक माइक्रोएल्गल बायोमास का उत्पादन भी होता है, इसका उपयोग वैकल्पिक ईंधन बनाने, उर्वरक, चारा व दवा बनाने में किया जा सकता है। हालांकि, इस प्रक्रिया में बेहद सतर्कता की आवश्यकता होती है।
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के पांच छात्रों का समूह लक्ष्मी ताल, धोबीघाट, तालाबों आदि में उगे पौधों पर शोध कर रहा है। इनका उपयोग जल शोधन, दवा आदि बनाने में किया जा सकता है। इसका प्रस्तुतिकरण किया गया, जो स्वीकार कर लिया गया।
– डॉ. एके गिरि, असोसिएट प्रोफेसर, पर्यावरण विभाग बुंदेलखंड विश्वविद्यालय